Friday, April 10, 2009

एक जूता मुझे भी मारो

दोस्तों, ये मेरी सबसे पहली पोस्ट है इस ब्लॉग पर...समझ नहीं आ रहा था क्या लिखूं और क्या न लिखूं.. पर हां कुछ बातें, कुछ वाकये दिल की तह तक सुई चुभा जाते हैं...और जब तक उन्हें बाहर न लाऊंगा दिल पर एक बोझ सा बना रहेगा...बहरहाल अपना रोना रोऊंगा तो पूरा पेज भर जायेगा और बात भी पूरी नहीं होगी... पिच्छले कुछ दिनों से मन बहुत आह़त था और ऊपर से इस जूते के किस्से ने तो जले पर नमक ही छिड़क दिया ...अब अपनी बात रखने के लिए इससे अच्छा टॉपिक हो ही नहीं सकता था. और ये पोस्ट भी उस्सी का नतीजा है. और हाँ, एक शुक्रिया आपका भी बनता है सर जी, आपकी प्रेरणा और बढ़ावे के बगैर आज मैं इस फोरम पर अपना ब्लॉग नहीं लिख पाता. thank u sirji. :)

एक जूता मुझे भी मारो

मैं हूँ आम आदमी

कभी बरगलाया जाता हूँ,

कभी भड़काया जाता हूँ,

मैं हूँ आम आदमी...

मैं हिन्दू हूँ तो कभी मुसलमान

मुझसे शर्मसार है हिंदुस्तान

अपने ही लोगों को काटा हैं मैंने

धर्म-प्रान्त में इस देश को बांटा है मैंने

मैं बिहारी हूँ, मैं मराठी हूँ, मैं मलयाली हूँ

सच पूछो तो दिमाग से खाली हूँ

मैं हूँ आम आदमी

एक जूता मुझे भी मारो...

अरे मैंने तो बेचा है अपना वोट

जहाँ दिखे हरे करारे नोट...

जो चूसते हैं मेरा खून,

मैंने चुने हैं ऐसे लोग,

आँखों में धुल झोंककर,

रहे हैं सत्ता सुख भोग.

मैं हूँ आम आदमी

एक जूता मुझे भी मारो...

इंडिया का इंडेक्स करप्शन में हाई है

ये इज्जत मैंने ही तो इस देश की बढ़ाई है

फाइलों को आगे बढाने के लिए देनी पड़ती है रिश्वत

100-200 देकर निकल जाने में समझता हूँ शराफत

झूठ नहीं बोलूँगा, काम निकालना जानता हूँ मैं...

पर अब ऐसा ना हो इसलिए

एक जूता मुझे भी मारो...

ताकि फिर कभी न चुनूं मैं

एक नाकारा लीडर

ताकि फिर दंगों की आग में

जले न कोई घर

ताकि फिर न पीना पड़े

ग़रीबी-लाचारी का ज़हर

ताकि फिर न फैला सकें

घूसखोरी अपने पर

ताकि फिर किसी का उल्लू सीधा न हो

मुझे बरगलाकर

ताकि फिर भाई-भाई ना लड़े

किसी के उकसावे पर

ताकि...ताकि मेरे देश को नाज़ हो

मुझ पर...!!!

मैं हूँ आम आदमी...!