Saturday, May 16, 2009
आस...
इस आस में कि सुबह हो
चलता हूँ अनंत पथ पर,
इस आस में कि अंत हो
चलता हूँ क्षितिज की ओर,
इस आस में कि पंख हो
चलता हूँ शूल पर,
इस आस में कि फूल हो
चलता हूँ रेत पर,
इस आस में कि नीर हो
चलता हूँ अकेला,
इस आस में कि साथ हो
नियति पर यकीन नहीं,
नीयत है ख़ुद पर यकीन हो
हारता भी हूँ,
इस आस में कि जीत पर यकीन हो
चलता हूँ....चलता रहूँगा
कि इस आस पर विश्वास हो....!!
Friday, May 8, 2009
एक टीस...!!!
हे माँ
मैंने देखी है दुनिया तेरी निगाहों से
पर क्यों..
चलने से पहले उखड गए क़दम राहों से
जिन आँखों में संवरना काजल था
जिन हाथों को थामना तेरा आँचल था
ख़त्म हो गए...
कुचल गए वो मचलते अरमान
ओझल हो गया वो उम्मीदों का आसमान
समझ ना पाया मेरा ये कोमल ह्रदय
क्यों ना हो पाया मेरी सुबह का उदय
रोशनी को तरसती खुल ना पाई मेरी पलक
कैसी हो तुम..?
देख ना पाई तुम्हारी एक झलक
क्यूँ...?
क्यूँ कर दिया मुझको खुद से अलग
क्यूँ कर दिया तेरी कोख ने ये फ़रक
रोया तो था तेरे दिल का कोई कोना
फिर क्यूँ किया ममता का आँगन सूना
हाँ,
मैंने देखी है दुनिया बस तेरी ही निगाहों से
चलने से पहले उखड गए क़दम राहों से...
Friday, April 10, 2009
एक जूता मुझे भी मारो
दोस्तों, ये मेरी सबसे पहली पोस्ट है इस ब्लॉग पर...समझ नहीं आ रहा था क्या लिखूं और क्या न लिखूं.. पर हां कुछ बातें, कुछ वाकये दिल की तह तक सुई चुभा जाते हैं...और जब तक उन्हें बाहर न लाऊंगा दिल पर एक बोझ सा बना रहेगा...बहरहाल अपना रोना रोऊंगा तो पूरा पेज भर जायेगा और बात भी पूरी नहीं होगी... पिच्छले कुछ दिनों से मन बहुत आह़त था और ऊपर से इस जूते के किस्से ने तो जले पर नमक ही छिड़क दिया ...अब अपनी बात रखने के लिए इससे अच्छा टॉपिक हो ही नहीं सकता था. और ये पोस्ट भी उस्सी का नतीजा है. और हाँ, एक शुक्रिया आपका भी बनता है सर जी, आपकी प्रेरणा और बढ़ावे के बगैर आज मैं इस फोरम पर अपना ब्लॉग नहीं लिख पाता. thank u sirji. :)
एक जूता मुझे भी मारो
मैं हूँ आम आदमी
कभी बरगलाया जाता हूँ,
कभी भड़काया जाता हूँ,
मैं हूँ आम आदमी...
मैं हिन्दू हूँ तो कभी मुसलमान
मुझसे शर्मसार है हिंदुस्तान
अपने ही लोगों को काटा हैं मैंने
धर्म-प्रान्त में इस देश को बांटा है मैंने
मैं बिहारी हूँ, मैं मराठी हूँ, मैं मलयाली हूँ
सच पूछो तो दिमाग से खाली हूँ
मैं हूँ आम आदमी
एक जूता मुझे भी मारो...
अरे मैंने तो बेचा है अपना वोट
जहाँ दिखे हरे करारे नोट...
जो चूसते हैं मेरा खून,
मैंने चुने हैं ऐसे लोग,
आँखों में धुल झोंककर,
रहे हैं सत्ता सुख भोग.
मैं हूँ आम आदमी
एक जूता मुझे भी मारो...
इंडिया का इंडेक्स करप्शन में हाई है
ये इज्जत मैंने ही तो इस देश की बढ़ाई है
फाइलों को आगे बढाने के लिए देनी पड़ती है रिश्वत
100-200 देकर निकल जाने में समझता हूँ शराफत
झूठ नहीं बोलूँगा, काम निकालना जानता हूँ मैं...
पर अब ऐसा ना हो इसलिए
एक जूता मुझे भी मारो...
ताकि फिर कभी न चुनूं मैं
एक नाकारा लीडर
ताकि फिर दंगों की आग में
जले न कोई घर
ताकि फिर न पीना पड़े
ग़रीबी-लाचारी का ज़हर
ताकि फिर न फैला सकें
घूसखोरी अपने पर
ताकि फिर किसी का उल्लू सीधा न हो
मुझे बरगलाकर
ताकि फिर भाई-भाई ना लड़े
किसी के उकसावे पर
ताकि...ताकि मेरे देश को नाज़ हो
मुझ पर...!!!
मैं हूँ आम आदमी...!