Saturday, May 16, 2009

आस...

चलता हूँ तम् पथ पर,
इस आस में कि सुबह हो

चलता हूँ अनंत पथ पर,
इस आस में कि अंत हो

चलता हूँ क्षितिज की ओर,
इस आस में कि पंख हो

चलता हूँ शूल पर,
इस आस में कि फूल हो

चलता हूँ रेत पर,
इस आस में कि नीर हो

चलता हूँ अकेला,
इस आस में कि साथ हो

नियति पर यकीन नहीं,
नीयत है ख़ुद पर यकीन हो

हारता भी हूँ,
इस आस में कि जीत पर यकीन हो

चलता हूँ....चलता रहूँगा
कि इस आस पर विश्वास हो....!!

4 comments:

  1. beautiful and full of optimism !

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  2. achhi kavita
    यूँ ही लिखते रहिये , हमें भी ऊर्जा मिलेगी
    धन्यवाद,
    मयूर
    अपनी अपनी डगर
    sarparast.blogspot.com

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